भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्ति / निशांत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ूब ज़ोर से
गहरी साँस लेता हूँ
और ज़्यादा ज़ोर से
'हुम' करके छोड़ता हूँ उसे

मुक्त करता हूँ अपने आप को
अपने से इस तरह भी