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मुख़्तसर सा मेरा मन तुझको ही ढूंढता / शीला तिवारी

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मुख़्तसर सा मेरा मन तुझको ही ढूंढता
सुनो ना, अपने व्यस्ततम पलों से दो पल मुझे दो ना
तुम्हारे गैर-मौजूदगी में
डोलती मेरे आस-पास चिलमन
तुम्हें हँसी आएगी जानोगे तुम
मैं बात करती हूँ दूधिया चाँद से
कहती मेरी पनाहों में उतर जाओ
कुछ बोलना चाहती हूँ, बातों के लिफ़ाफ़े से लपेटे
चाँद में मैं अपनी उदासी को हूँ पाती
चाँद मुस्कुराकर मेरे जेहन में उतरता
पर मुख़्तसर सा मेरा मन तुझको ही ढूंढता
सुनो ना, अपने व्यस्ततम पलों से दो पल मुझे दो ना
मैं खालीपन दूर करने को चिड़ियों को बुलाती
देखती उनका फुदकना, चहचहाना
मैं भी चहकना चाहती हूँ
उनसे बाते करते कहती हूँ, कैसे तुम इतना खुश रहते हो?
उड़ते हो स्वच्छंद आकाश में मेघों की छाँव लिए
बादलों के पन्नो पर लिखते जाते अपने कलरव गीत
उदासी को भंग करती चहकती आवरण के साये
कहती मेरे भीतर में उतरो
तन्हाई की कोलाहल मेरे मन से तोड़ो
पर मुख़्तसर सा मेरा मन तुझको ही ढूंढता
सुनो ना, अपने व्यस्ततमम पलो से दो पल मुझे दो ना
धूप से नहायी सुबह की स्वर्णयुक्त उजाला
नभ के ऊपर दिखता सुंदर केसरिया रंग में लिए सूरज
अंधकार को चीरने बैठ जाता लेकर अपनी मिज़ाज के गर्माहट से
धूप की प्रकाश रेखा पेड़ो के ओट से
मेरे घर के सूने बरामदे में हलचल करता
कहता मैं आया हूँ दस्तक देने
देखो तेरे लिए लाया हूँ केसरिया छटा
अंगुलियों के पोरो से महसूस करो मेरी उष्णता को
सींच देगी तेरे मन को मेरे रंगो से भरे नज़ारे
धीरे-धीरे मैं कहती मेरे अंतस में उतरो
पर मुख़्तसर सा मेरा मन तुझको ही ढूँढता
सुनो ना, अपने व्यस्ततम पलों से दो पल मुझे दो ना
मैं पेड़ो को झूमते देखती
हवाओं से सर-सर बातें करती सुनती
मैं डूब जाती सुनहले ख्वाब का डोर लिए
पेड़ों के पास जाती उनसे बातें करती
कहती, कैसे झूमते हो
अपनी हरियाली को समेटे खग वृंदों से बाते करते हो
हवाओं से दिन भर अटखेलियाँ में लहराते हो
मैं भी तेरे जैसा मायूसी को भगाना चाहती हूँ
हरियाली की सुंदर धूप में नहाना चाहती हूँ
तुम मेरे भावनाओं में बहो
हरियाली पर घना कोहरे सा लिए मेरा मन
मैं पेड़ो को उसकी नादानियों पे हँसती
पर मुख़्तसर सा मेरा मन तुझको ही ढूढता है
सुनो ना, अपने व्यस्ततम पलों से दो पल मुझे दो ना
मैं भी अपने भीतर चहकना चाहती हूँ
चंचलता को जिंदा करना चाहती हूँ
प्रेमल धूप में नहा कर
चाँदनी को अपने दिल में जमाना चाहती हूँ
पर मुख़्तसर सा मेरा मन तुझको ही ढूँढता है।
सुनो ना, अपने व्यस्ततम पलों से दो पल मुझे दो ना