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मुझको एकाकी गाने दो! / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'

मुझको एकाकी गाने दो!
गाऊँ भी मैं, और सुनूँ भी; छिन अपने में खो जाने दो!
मुझ को एकाकी गाने दो!

नयनों में भर रस से गीले,
गत सुधियों के चित्र सजीले-
मँदरे-मँदरे स्वर में मुझ को गाते-गाते सो जाने दो!

इस निर्जन झरने के पट पर,
आने दो यह बंसी का स्वर
नवमी के चंदा को मेरे मन की मलमल धो जाने दो!
मुझको एकाकी गाने देा!

एक बार बस ऐसा गा लूँ-
अपने को अपने में पा लूँ!
युग-युग से बिछुड़े तन-मन का साथ तनिक तुम हो जाने दो!
मुझको एकाकी गाने दो!