Last modified on 30 अप्रैल 2020, at 17:16

मुझको क्या दुनिया से डर है / रूपम झा

मुझको क्या दुनिया से डर है
जब तू ही मेरे भीतर है

वो मुझको नापेगा कैसे
उसका क़द ख़ुद बित्ता भर है

मुझको क्या करना काशी से
मेरा घर, मेरा मगहर है

रोज़ अँधेरा देह नोचता
आख़िर कैसा सभ्य शहर है

मुझको मत पैसे दिखलाओ
मोल मेरा ढाई आखर है

हिन्दी, उर्दू में तुम बाँटो
मेरा हिन्दुस्तानी स्वर है

सब कुछ है किरदार जहाँ में
कीमत क्या, बस एक नज़र है