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मुझको न देख दूर से , नज़दीक आ के देख / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

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मुझको न देख दूर से , नज़दीक आ के देख
पत्थर हूँ ,हल्का फूल से, मुझको उठा के देख

चेहरे के दाग़ एसे तो ,आते नहीं नज़र
दरपन के रु-ब-रु ,ज़रा नज़रें मिला के देख

लफ़्ज़ों की आत्मा में , उतरता नहीं कोई
विपदा तू अपनी,अपने ही ,घर में सुना के देख

खुशबू को कैसे ले उड़ा झोंका हवा का दोस्त
तू भी तो अपने प्यार की खुशबू लुटा के देख

यह क्या क़ि बुत बना लिए पत्थर तराश के
तू आदमी को आदमी "आज़र" बना के देख