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मुझसे इस प्यास की शिद्दत न सँभाली जाए / समीर परिमल

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मुझसे इस प्यास की शिद्दत न सँभाली जाए
सच तो ये है कि मुहब्बत न सँभाली जाए

मेरे चेहरे पे नुमायां है यूँ उसका चेहरा,
आइने से मेरी सूरत न सँभाली जाए

आपके शह्र की मगरूर हवाएँ तौबा
इनसे अब हुस्न की दौलत न सँभाली जाए

मुझको ख्वाबों में ही ऐ यार गुज़र जाने दे
इन निगाहों से हक़ीक़त न सँभाली जाए

बोझ उम्मीदों का शानों पे उठाएँ कबतक
घर की दीवारों से ये छत न सँभाली जाए