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मुझसे मेरी छाँव छुड़ा दो / रामगोपाल 'रुद्र'

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मुझसे मेरी छाँव छुड़ा दो!

मति ही अति बाधा है मेरी!
भीतर फेरा, बाहर फेरी;
दे दो थोड़ी राख मुझे भी,
इस ठगिनी का ठाँव छुड़ा दो!

मंजिल मेरी और कहीं है;
हूँ जिस पर, वह राह नहीं है;
एक बार, बस, एक बार हे!
इस दलदल से पाँव छुड़ा दो!

भर पाया मैं ऐसे घर से;
अपने भी लगते हैं पर-से;
साथ मुझे भी कर लो, योगी!
कल-छल का यह गाँव छुड़ा दो!