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मुझे कोई सूरत लुभाती नहीं है / चेतन दुबे 'अनिल'

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मुझे कोई सूरत लुभाती नहीं है
तेरी याद ही दिल से जाती नहीं है

सदा अश्क बनकर के बहती दृगों से
कि जो याद दिल में समाती नहीं है

प्रणय - पंथ पर मैं अकेला खड़ा हूँ
कोई साथ चलने को साथी नहीं है

तिमिर - ही - तिमिर छा गया जिन्दगी में
मगर चाँदनी रात भाती नहीं है

न जाने कि क्या हो गया है हृदय को
जो तेरे बिना नींद आती नहीं है

दिया बन के अब रोशनी कौन देगा
जो दिल के दिए में ही बाती नहीं है

निगाहे - करम मुझपे फिर कीजिएगा
क्यों अब एक भी आती पाती नहीं है