अपने कितने किए क़सीदे
आज उघाड़े हमने
तब जाकर इतनी सी हक़ीक़त
तुमने देखी है
कितनी अपनी छवियाँ धूमिल
कर बाहर निकलूँगा ।
कितना अनगढ़ हूँ मैं,
अभी तुम्हें
बताना बाक़ी है ।
कितने और मुखौटों को
चीर-फाड़ कर फेकूँगा
फिर आइने में
ख़ुद को
ज़रा -ज़रा सा देखूँगा ।