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मुझे नहीं जाना उस ओर / केदारनाथ अग्रवाल

अँधेरे पानी की सर्पाकार फुफकारती
गुफाओं में
न समय है जहाँ-न समय की गुफाओं
में सिद्धि
न समय का स्वीकार
न दिशा है जहाँ-न दिशा का बोध
न दिशा का संस्कार
सब कुछ छोड़ते पीछे अपना-सबका
रिक्त होते और भी रिक्त होते मुक्त होते
नग्न होते शरीर से अशरीर होते
तर्कित अस्तित्व में
अतर्कित अनस्तित्व में
अवसित होते
अजन्मा अमृत अगोचर रहने के लिए
चलते चले जाएँ चाहे जितने लोग
मुझे नहीं जाना उस ओर
वहाँ मुझे नहीं मिलेगी शांति

रचनाकाल: ३०-०१-१९६७