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मुझे बता दे माँ / स्वाति मेलकानी

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ना तुझ जैसी रह पाऊँ
ना खुद जैसी ही बन पाऊँ
मुझे बता दे माँ
मैं चैन कहाँ पर पाऊँ?
नहीं सुहाता पोछे का कपड़ा बन जाना।
दम घुटता है, हवा चाहिए
और पानी भी
और जमीन भी
लेकिन मुझको
आसमान भी दिखता है माँ
पेड़ों की शीतल छाया में लेटी मैं,
जग जाती हूँ पत्तों में से
छनकर आती धूप देखकर।
माँ तुझको भी तो बारिश अच्छी लगती है।
मैं बूँदों के साथ-साथ हो
सागर तक ही बह जाऊँ जो
तो वापस आ जाना मेरा
हो पाएगा क्या फिर से माँ?
खुद को रोका था मैंने
भाप बनने से
पर
पोखर का पानी मैं
सड़ने लगी थी
बूँद कौन सी
कहाँ उठी थी
क्या मालूम है।
पोखर, भाप, बादल और बारिश
बूँद रास्ता याद रखेगी
क्या मालूम है।