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मुझे मिला है शरीर / ओसिप मंदेलश्ताम

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मुझे मिला है शरीर - क्‍या करूँ मैं उसका ?
उस इतने साबूत और इतने मेरे अपने आपका ?

साँस लेने और जीने की ख़ुशियों के लिए
किसे कहूँ मैं शब्‍द धन्‍यवाद के ?

मैं ही फूल हूँ और मैं ही उसे सींचने वाला
अकेला नहीं मैं संसार की काल कोठरी में ।

काल की अनन्तता के काँच पर
यह मेरी गरमी है और यह मेरी साँस ।

उभर आती है उस पर ऐसी बेलबूटी
तय करना मुश्किल कि असल में वह है क्‍या ?

धुल जाएगी आज के इस क्षण की मैल
पर मिटेगी नहीं यह सुन्दर बेलबूटी ।

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह