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मुझे मुझ से ले लो / जमीलुर्रहमान

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दोज़ख़ साअतों के
सभी ख़्वाब आसेब बन कर
मिरे दिल से लिपटे हुए हैं
मिरी रूह अनजाने हाथों में जकड़ी हुई है
मुझे मुझ से ले लो
कि ये ज़िंदगी
उन अज़ाबों की मीरास है
लम्हा लम्हा जो मेरा लहू पी रहे हैं
ज़मानों से मैं मर चुका हूँ मगर अन-गिनत
वहशी इफ़रीत
मेरे लहू की तवानाई पर आज भी पल रहे हैं