Last modified on 22 जनवरी 2019, at 21:48

मुझे सपनों में अब भी दिखती है / कपिल भारद्वाज

मुझे सपनों में अब भी दिखती है,
मेरी पुरानी प्रेमिका के दांतो की लड़ियाँ,
जो कभी उसके हंसने पर दिखी थी,
दो-चार बार !

चिड़िया के दूध जैसी है ये स्मृति,
जो झटके से आती है और समय रोककर चली जाती है !

एक अंधेरे सागर की तलहटी पर बैठी उसकी हंसी,
स्त्री विमर्श का एक बेहतर उदाहरण हो जाता,
यदि उसने अपने भीतर बैठी,
कोयल की कूक को पहचान लिया होता,
और आकाश की तरफ उड़ ली होती !

मगर अफसोस,
एक कवि के साथ बीहड़ जंगली फूल चुनने की अपेक्षा,
गमले में उगे गन्धहीन गुलाब,
को ...... परेफर किया !

रंगमंच पर दो पात्र थिरकते हैं,
देह लचकती है केले के पत्तो ज्यों,
अभिनय में दक्ष समय,
सलीब पर टँगा नज़र आता है,
और पर्दा गिर जाता है, आंख खुल जाती हैं ।

  • पंजाबी कथाकार गुरुदयाल सिंह का कथात्मक प्रतीक