मुझ निर्धन का धन है
एक दिन
रविवारे मत आना
धीमी दिनचर्या के
आस-पास अपनापन
दर्पण का एक वचन
मुश्किल से मिलता है
साँचे का लोह-बदन
एक दिन पिघलता है
और किसी दिन
चाहे आ जाना
मत आना, रविवारे मत आना
मुझ निर्धन का धन है
एक दिन
रविवारे मत आना
धीमी दिनचर्या के
आस-पास अपनापन
दर्पण का एक वचन
मुश्किल से मिलता है
साँचे का लोह-बदन
एक दिन पिघलता है
और किसी दिन
चाहे आ जाना
मत आना, रविवारे मत आना