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मुझ से एक दिन के लिए भी दूर मत जाओ / पाब्लो नेरूदा / प्रतिभा उपाध्याय

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मत जाओ दूर मुझ से एक दिन के लिए भी, क्योंकि
क्योंकि -- नहीं जानता कि कैसे कहूँ मैं, दिन है लम्बा
और करता रहूँगा मैं इन्तज़ार तुम्हारा ख़ाली स्टेशन पर
जब किसी स्टेशन पर आ कर खड़ी होंगी रेलगाड़ियाँ I

मत जाओ एक घण्टे के लिए भी, क्योंकि तब
ऐसे समय में लग जाता है अम्बार चिन्ताओं का,
सम्भव है घर की तलाश में मंडराता हुआ धुआँ
आ जाए दम घोटने के लिए, टूटे हुए मेरे दिल का,

अरे, कहीं बिगड़ न जाए रूप तुम्हारा रेत में
ओ, कहीं लौट न जाएँ पलकें तुम्हारी शून्य में
नहीं जाना एक पल के लिए भी, प्रिये;

क्योंकि इसी पल में चली गई होगी तुम दूर इतना
कि पार करूँगा मैं सारी दुनिया, आरज़ू करते हुए
कि वापस आ जाओगी तुम अथवा छोड़ दोगी मुझे मरने के लिए?

मूल स्पेनिश से अनुवाद : प्रतिभा उपाध्याय