Last modified on 20 सितम्बर 2016, at 06:34

मुट्ठी में दो-चार नहीं / दीपक शर्मा 'दीप'

 
मुट्ठी में दो-चार नहीं
कोई तेरा यार नहीं

यूँ ही गले लगाएगा
ऐसा तो संसार नहीं

सच्ची बातें लिखता हो
कोई भी अखबार नहीं

कहता हूँ सो करता हूँ
भाई! मैं सरकार नहीं

अपनी राह बनाओ ख़ुद
यूँ तो,बेड़ा पार नहीं

पूछ-पूछ कर मारेंगे
कहो दो मैं बीमार नहीं

चलो तवायफ़ ग़ाफ़िल है
हम तो इज़्ज़तदार नहीं

माना कि बेकार हैं 'दीप'
इतने भी बेकार नहीं I