भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुण्डकोपनिषद / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
  
 
'''ॐ  श्री परमात्मने नमः''' <br><br>
 
'''ॐ  श्री परमात्मने नमः''' <br><br>
 +
'''मुंडकोपनिषद'''<br>
 +
'''शान्ति पाठ'''<br>
 +
हे देव गण !कल्याण मय हम वचन कानों से सुनें,<br>
 +
कल्याण ही नेत्रों से देखें, सुदृढ़ अंग बली बनें।<br>
 +
आराधना स्तुति प्रभो की हम सदा करते रहें,<br>
 +
मम आयु देवों के काम आए, हम नमन करते रहें।<br>
 +
हे इन्द्र !मम कल्याण को , कल्याण का पोषण करें,<br>
 +
हे विश्व वेदाः पूषा श्रीमय ज्ञान संवर्धन करें।<br>
 +
हे बृहस्पति ! अरिष्ट नेमिः स्वस्ति कारक आप हैं,<br>
 +
सब त्रिविध ताप हों शांत जग के, देते जो संताप हैं।<br><br>
  
'''शांति पाठ'''<br>
 
 
<span class="upnishad_mantra">
 
<span class="upnishad_mantra">
 
 
</span>
 
</span>
  

19:23, 5 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण

ॐ श्री परमात्मने नमः

मुंडकोपनिषद
शान्ति पाठ
हे देव गण !कल्याण मय हम वचन कानों से सुनें,
कल्याण ही नेत्रों से देखें, सुदृढ़ अंग बली बनें।
आराधना स्तुति प्रभो की हम सदा करते रहें,
मम आयु देवों के काम आए, हम नमन करते रहें।
हे इन्द्र !मम कल्याण को , कल्याण का पोषण करें,
हे विश्व वेदाः पूषा श्रीमय ज्ञान संवर्धन करें।
हे बृहस्पति ! अरिष्ट नेमिः स्वस्ति कारक आप हैं,
सब त्रिविध ताप हों शांत जग के, देते जो संताप हैं।