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मुफ़लिस तो खड़े रह गए ईमान की सफ़ में / ओम प्रकाश नदीम

मुफ़लिस तो खड़े रह गए ईमान की सफ़ में ।
ज़रदार सभी आ गए भगवान की सफ़ में ।

बाज़ार के सिक्के की करामात तो देखो,
औसाफ़ भी अब लग गए सामान की सफ़ में ।

चिन्ता न करो अब भी बहुत लोग हैं हम-से,
चकबस्त-ओ-दयाशंकर-ओ-रसखान की सफ़ में ।

तूफ़ान के आते ही बदल जाएगा मंज़र,
मौजें भी नज़र आएँगी तूफ़ान की सफ़ में ।

जिस रोज़ से घर छोड़ के घर अपना बसाया,
उस रोज़ से हम आ गए मेहमान की सफ़ में ।