Last modified on 19 नवम्बर 2013, at 14:25

मुमकिन ही नहीं की किनारा भी करेगा / हिलाल फ़रीद

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:25, 19 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हिलाल फ़रीद }} {{KKCatGhazal}} <poem> मुमकिन ही न...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुमकिन ही नहीं की किनारा भी करेगा
आशिक़ है तो फिर इश्क़ दूबारा भी करेगा

परदेस में आया हूँ तो कुछ मैं भी करूँगा
कुछ काम तेरे तख़्त का तारा भी करेगा

अंदाज़ यही है यही एतवार हैं उस के
बैठेगा बहुत दूर इशारा भी करेगा

रोएगा कभी ख़ूब कभी ख़ूब हँसेगा
क्या और तेरे तीर का मारा भी करेगा

जब वक़्त पड़ा था तो जो कुछ हम ने किया था
समझे थे वही यार हमारा भी करेगा

शेरों में ‘हिलाल’ आप को कहना है फ़क़त सच
सच बात मगर कोई गवारा भी करेगा