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मुम्बई में एक तिब्बती / तेनजिन त्सुंदे

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मुम्बई में एक तिब्बती
को विदेशी नहीं समझा जाता ।

यह एक चाइनीज़ ढाबे
में रसोइया होता है
लोग समझते वह चीनी है
बीजिंग से आया कोई भगौड़ा

वह परेल ब्रिज की छाँह में
स्वेटर बेचता है गर्मियों में
लोग समझते हैं वह
कोई रिटायर हो चूका नेपाली बहादुर है ।

मुम्बई में एक तिब्बती
बम्बइया हिन्दी में गाली देता है
तनिक तिब्बती मिले लहज़े के साथ
और जब उसकी शब्द-क्षमता खतरे में पड़ती है
ज़ाहिर है वह तिब्बती बोलने लगता है,
ऐसे मौकों पर पारसी हँसने लगते हैं ।

मुम्बई में एक तिब्बती को
पसन्द आता है मिड-डे उलटना
उसे पसन्द है एफ० एम० अलबत्ता वह नहीं करता
तिब्बती गाना सुन पाने की उम्मीद
वह एक लालबत्ती पर बस पकड़ता है
दौड़ती ट्रेन में घुसता है छलाँग मारता
गुज़रता है एक लम्बी अँधेरी गली से
और जा लेटता है अपनी खोली में ।

उसे गुस्सा आता है
जब लोग उस पर हँसते हैं
चिंग-चौंग-पिंग-पौंग"

मुम्बई में एक तिब्बती
अब थक चूका है
उसे थोड़ी नींद चाहिए और एक सपना,
11 बजे रात की विरार फ़ास्ट में
वह चला जाता है हिमालय
सुबह 8:05 की फ़ास्ट लोकल
उसे वापस ले आती है चर्चगेट
महानगर में -- एक नए साम्राज्य में ।