भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुरली / भोजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हमार मुरली भइल बा चोरी, मुरलिया दिलाइ दऽ ए भाई।
सूतल रहलीं कदम के छैयां धर बंसी सिरहानी,
एतने में आ गइल निदिया बैरी, हो गइल मुरली के हानी,
मुरलिया दिलाइ दऽ ए भाई।
ओहि मुरली में प्राण बसल बा छछन जिअरवा मोरी,
जैसे हम हईं तोहरो दुलरुआ ओइसहीं मुरलिया मोरी,
मुरलिया दिखलाइ दऽ ए भाई।

(राजाराम सहनी, सोनपुर)