Last modified on 11 जून 2016, at 01:30

मुर्गा मामा / मधुसूदन साहा

मुर्गा मामा, मुर्गा मामा
भोरे-भोरे जगावै छौ
जखनी नीन सतावै छै
तखनी बाँग लगावै छौ

सूरज के उठला सें पहिनें
पूरब के जगला सें पहिनें
कुकडू कूँ के भोंपू सें
सब के नीन भागवै छौ।

तोरा नीन नै आवै छौं?
नानी की नै सुतावै छौं?
केना रोजे टाईम पर
ई ‘एलार्म’ बजावै छौ?

कलगी तोरोॅ चमकै छौं
मोर पंख रं दमकै छौं
एकरा तों चमकावै लेॅ
रोजे रंग लगावै छौ?