भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुसाण / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:11, 17 नवम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गांव रै बारै
मुसाणां रै असवाड़ै-पसवाड़ै
खड़्या रूंख'र झाडख़ा
लागै उदास-उदास
अर रूंखां माथै
बैठी चिड़कल्यां
निरखै
म्हां सगळां नै
गूंगी अर बावळी सी
बुत बणयोड़ी
चुपचाप

तद
लागै मुसाण
फकत
माटी रौ अजायबघर ।