भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुसाफ़िर / कुलवंत सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह दुनिया एक रंगमंच है
मुसाफ़िर आते हैं,
अपना किरदार निभाते हैं
फिर चले जाते हैं।

सब अपना अपना रंग दिखा जाते हैं
कुछ अच्छे, कुछ बुरे काम कर जाते हैं।
कुछ हीर-रांझा, लैला-मजनू
जैसा प्यार कर जाते हैं।

कुछ धर्मगुरू शंकराचार्य बन
अद्वैत और विश्वास दे जाते हैं।
कुछ नानक, बुद्ध, ईसा, पैगंबर बन
मानवता को दिशा दे जाते हैं।

कुछ राणा प्रताप, शिवाजी, गुरु गोविंद बन
दीनों को जुल्मियों से बचा जाते हैं।
कुछ नादिर, गोरी, तैमूर बन
देश को लूट ले जाते हैं।

कुछ आर्यभट्ट, भास्कर बन
खगोल बना जाते हैं।
कुछ चरक, सुश्रुत बन
चिकित्सा को आयाम दे जाते हैं।

कुछ अशोक, चंद्रगुप्त, आकबर बन
देश को जोड़ जाते हैं।
कुछ औरंगजेब, मीर जाफ़र, जयचंद्र बन
देश को तोड़ जाते हैं।

कुछ गांधी, विवेकानंद बन
ऎसे कर्म कर जाते हैं,
कि अपने पीछे, अपने
पदचिन्हों को छोड़ जाते हैं।

कुछ भक्ति में लीन हो जाते हैं
मीरा बन कृष्ण को पा जाते हैं।
कुछ समाज सुधारक बन
राम मोहन राय और कबीर बन जाते हैं।

कुछ मदर टेरेसा बन
दूसरों की सेवा अपना लेते हैं।
उनमें ही ईश्वर और खुशी ढ़ूंढ़
खुद को भूल जाते हैं।

कुछ भगत, आजाद, बोस बन
देश पर निछावर हो जाते हैं
कुछ तेलगी, हर्षद, वीरप्प्न बन
देश को ही चूस जाते हैं।

कुछ युवाओं के आइकान बन
किंग-खान, बिग- बी बन जाते हैं ।
कुछ पागलपन की हद तक गिर
अपनों की पीठ में छुरा घोंप जाते हैं।

कुछ हैवान बन जाते हैं
कुछ शैतान बन जाते हैं
कुछ बेईमान बन जाते हैं
कुछ सम्मान पा जाते हैं।

कुछ विज्ञान से यान बना जाते हैं
कुछ जीवन को रोशन कर जाते हैं।
कुछ मानवता को तबाह करने
परमाणु बम गिरा जाते हैं।

कोई खुन बहाता है
कोई खून चूसता है।
कोई धर्म, देश, जाति पर
खून निछावर कर जाता है।

यह दुनिया एक रंगमंच है
मुसाफ़िर आते हैं,
अपना किरदार निभाते हैं
फिर चले जाते हैं।