Last modified on 23 दिसम्बर 2013, at 18:28

मुस्कुराऊंगा,गुनगुनाऊंगा / रमेश 'कँवल'

मुस्कराउंगा, गुनगुनाउंगा
मैं तेरा हौसला बढ़ाउंगा

रूठने की अदा निराली है
जब तू रूठेगा, मैं मनाउंगा

क़ुरबतों के चिराग़ गुल करके
फ़ासलों के दिये जलाउंगा

जुगनुओं-सालिबास पहनूंगा
तेरी आंखों में झिलमिलाउंगा

मेहर बांहो गाजबवो जाने-'कंवल’
उसकी गुस्ताखियां गिनाउंगा