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मुस्कुराहट तेरी है या मौ’जिज़ा है / हरिराज सिंह 'नूर'

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मुस्कुराहट तेरी है या मौ’जिज़ा है।
मेरे हक़ में जो दवा भी और दुआ है।

वक़्त को भी याद करना तुम ख़ुशी से,
मेघ जब बनता किसी का रहनुमा है।

ख़ूब दिलकश लग रहा जो देखने में,
आज़माया तक नहीं वो सिलसिला है।

‘नूर’ तुमको क्या हुआ, हैरान क्यों हो?
ये तो मेरा पहला-पहला तब्सिरा है।

गिर के उठना कब हुआ, आसान किसको?
‘नूर’ को बस एक तेरा आसरा है।