भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुहब्बत का ही इक मोहरा नहीं था / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' }} {{KKCatGhazal}} <poem> मुहब्बत का ही इक मोह…) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | मुहब्बत का ही इक | + | मुहब्बत का ही इक मुहरा नहीं था |
तेरी शतरंज पे क्या-क्या नहीं था | तेरी शतरंज पे क्या-क्या नहीं था | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
जहाँ दिल था भले दरिया नहीं था | जहाँ दिल था भले दरिया नहीं था | ||
− | हमारे ही | + | हमारे ही क़दम छोटे थे वरना |
यहाँ परबत कोई ऊँचा नहीं था | यहाँ परबत कोई ऊँचा नहीं था | ||
14:28, 17 जून 2020 के समय का अवतरण
मुहब्बत का ही इक मुहरा नहीं था
तेरी शतरंज पे क्या-क्या नहीं था
सज़ा मुझको ही मिलती थी हमेशा
मेरे चेहरे पे ही चेहरा नहीं था
कोई प्यासा नहीं लौटा वहाँ से
जहाँ दिल था भले दरिया नहीं था
हमारे ही क़दम छोटे थे वरना
यहाँ परबत कोई ऊँचा नहीं था
किसे कहता तवज्ज़ो कौन देता
मेरा ग़म था कोई क़िस्सा नहीं था
रहा फिर देर तक मैं साथ उसके
भले वो देर तक ठहरा नहीं था