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मुहब्बत की तू अब कहानी बदल दे / अनीता मिश्रा

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मुहब्बत की तू अब कहानी बदल दे
अगर हो सके तो निशानी बदल दे।

सदा वक़्त कब एक जैसा रहा है
मिला वक़्त तो हुक्मरानी बदल दे

नहीं काम आये जो अपने वतन के
वो कमज़र्फ अब तो जवानी बदल दे।

हमें आपसे अब शिकायत नहीं है,
मगर शर्त आदत पुरानी बदल दे।

तरसती जमीं एक कतरा को अब तो
बचा जल ज़रा जिंदगानी बदल दे।

जो किस्मत में लिख्खी जुदाई ये तेरी
अनिता तो अब हर निशानी बदल दे