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मूक कर्मयोगी / दामिनी

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 शुक्र है चीटियां
राशिफल नहीं पढ़ पाती हैं।
सितारों की बनती-बिगड़ती चाल या
पूर्वजन्म के कर्मों की उन्हें
चिंता नहीं सताती है,
आस-पास से गुजरती हरेक चींटी के लिए,
येे चीटियां ठहरती तो जरूर हैं,
क्या कभी इन्हें भी
बनावटी मुस्कान या सभ्यता के मुखौटों की
जरूरत पेश आती हैं?
अपने से दस गुना बड़े अनाज के दाने को
लुढ़काए लिये चली जाती हैं,
पर क्यों नहीं ये कभी
पसीने से लथपथ या थकान से चूर
नजर आती हैं?
क्या कभी इन्हें भी होता होगा तनाव या
कभी अपनों के अकेलेपन की चिंता सताती है?
भीड़ में रहकर भी,
कौन-सी ‘गीता’ की उपासक हैं ये
कि हर वक्त,
कर्म का मंत्र ही दोहराती नजर आती हैं?
या फिर एक अनाज का दाना या टुकड़ा-भर ही
इनके सारे जीवन की धुरी है?
चींटियों का संसार
इंसानों के आस-पास ही बसा पाता है,
पर फिर भी कोई ‘ह्यूमन-फ्लू’
इन्हें छू तक नहीं पाता है।
शायद अनुराग, प्यार से नहीं हैं
ये भी अछूती।
अंडों से निकल संपूर्ण-चींटी बनने तक
इनका वजूद भी मां से ही
दिशा पाता है।
जीवन-मृत्यु का चक्र
इनके जीवन में भी आता है,
पर कोई बीता हुआ या आनेवाला कल
इनके आज को उगने और
सार्थकता से गुजरने से
रोक नहीं पाता है।
कर्म पर आधारित चींटियों का संसार
शायद बैठ के कर्म-चिंतन का
वक्त नहीं निकाल पाता है।