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मृत्यु और मेरा शहर / अंजू शर्मा

Kavita Kosh से
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बचपन में पढ़ी
गीता का अर्थ
मैं जान पाई बहुत देर बाद,
मेरे शहर में
जहाँ जीवन क्षणभंगुर है
और मृत्यु एक सच्चाई है...

दादाजी कहा करते थे
मृत्यु से छ माह पहले
दिखना बंद हो जाता है ध्रुवतारा,
मेरे शहर की चकाचौंध ने लील लिया
ध्रुवतारे की चमक को
जाने कितनी ही छमाहियों पहले
क्या अब सब मृत्यु के इंतज़ार में हैं...

कहीं पढ़ा था आशाराम बापू ने कहा
कबूतरों को दाना डालने वाले लोग
जान लेते हैं मृत्यु का आगमन,
ऐसी बातों पर मैं अक्सर मुस्कुरा देती हूँ,
मेरे शहर से घटते कबूतर
अब नहीं आया करते दाने की तलाश में,
मैं रोज देखती हूँ भरे हुए दाने के बर्तन
और खाली मुंडेर को,
क्या पूर्वाभास ने बदल ली है अपनी दिशा...

मृत्यु से पहले महमूद दरवेश मांगते हैं
महज दस मिनट डॉक्टर से कि
क्या पता जी लें
इत्तफाकन दस मिनट और ज्यादा,
मेरे शहर के लोग
मोबाइल पर बतियाते, दौड़ते-भागते
बसों या मेट्रो की ओर,
घर से निकलने और सकुशल घर
लौटने के दरम्यान,
बदल जाते हैं जीवित टाइम बमों में,
नहीं जानते कि उनके पास दस मिनट हैं,
दस घंटे या खुशकिस्मती से दस साल,

ज्योतिषी कहते हैं जन्म-कुंडली में
अष्टम भाव का स्वामी शुभ स्थिति में
बृहस्पति की दृष्टि या प्रभाव में होता है
तो व्यक्ति पा जाता है मृत्यु-गंध,
क्या सचमुच ऐसा होता है?
सोचती हूँ मेरे शहर में मृत्यु-गंध
इतनी तीव्र होती होगी
कि नहीं हो पाता होगा आभास
ये किस ओर से आ रही है,
काश अनहोनियों से भरे अखबार कभी
छप पाते एक रोज़ पहले,
किसी एक रोज ध्रुव तारा वायदा करता
सहस्रशताब्दियों सभी के लिए यूँ ही चमकते रहने का,
किसी एक रोज कबूतर बेखटके आते मेरी मुंडेर पर
और खाते जीभर दाना
किसी एक रोज मेरे शहर के लोग
निजात पाते टाइम बम की टिक टिक से
और पा जाते मोहलत में, जाने कितने ही दस साल,
किसी एक रोज जिंदगी मौत की ओर बढ़ने से रुक पाती...
किसी एक रोज...

बचपन में पढ़ी
गीता का अर्थ
मैं जान पाई बहुत देर बाद,
मेरे शहर में
जहाँ जीवन क्षणभंगुर है
और मृत्यु एक सच्चाई है...

दादाजी कहा करते थे
मृत्यु से छ माह पहले
दिखना बंद हो जाता है ध्रुवतारा,
मेरे शहर की चकाचौंध ने लील लिया
ध्रुवतारे की चमक को
जाने कितनी ही छमाहियों पहले
क्या अब सब मृत्यु के इंतज़ार में हैं...

कहीं पढ़ा था आशाराम बापू ने कहा
कबूतरों को दाना डालने वाले लोग
जान लेते हैं मृत्यु का आगमन,
ऐसी बातों पर मैं अक्सर मुस्कुरा देती हूँ,
मेरे शहर से घटते कबूतर
अब नहीं आया करते दाने की तलाश में,
मैं रोज देखती हूँ भरे हुए दाने के बर्तन
और खाली मुंडेर को,
क्या पूर्वाभास ने बदल ली है अपनी दिशा...

मृत्यु से पहले महमूद दरवेश मांगते हैं
महज दस मिनट डॉक्टर से कि
क्या पता जी लें
इत्तफाकन दस मिनट और ज्यादा,
मेरे शहर के लोग
मोबाइल पर बतियाते, दौड़ते-भागते
बसों या मेट्रो की ओर,
घर से निकलने और सकुशल घर
लौटने के दरम्यान,
बदल जाते हैं जीवित टाइम बमों में,
नहीं जानते कि उनके पास दस मिनट हैं,
दस घंटे या खुशकिस्मती से दस साल,

ज्योतिषी कहते हैं जन्म-कुंडली में
अष्टम भाव का स्वामी शुभ स्थिति में
बृहस्पति की दृष्टि या प्रभाव में होता है
तो व्यक्ति पा जाता है मृत्यु-गंध,
क्या सचमुच ऐसा होता है?
सोचती हूँ मेरे शहर में मृत्यु-गंध
इतनी तीव्र होती होगी
कि नहीं हो पाता होगा आभास
ये किस ओर से आ रही है,
काश अनहोनियों से भरे अखबार कभी
छप पाते एक रोज़ पहले,
किसी एक रोज ध्रुव तारा वायदा करता
सहस्रशताब्दियों सभी के लिए यूँ ही चमकते रहने का,
किसी एक रोज कबूतर बेखटके आते मेरी मुंडेर पर
और खाते जीभर दाना
किसी एक रोज मेरे शहर के लोग
निजात पाते टाइम बम की टिक टिक से
और पा जाते मोहलत में, जाने कितने ही दस साल,
किसी एक रोज जिंदगी मौत की ओर बढ़ने से रुक पाती...
किसी एक रोज...