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मेघ के हिस्से बस गिला / विभा रानी श्रीवास्तव

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तब शिखर ने बाँधा ,
नभ का साफ़ा ...

जब क्षितिज पर छाता ,
भाष्कर भष्म होता।
लगता मानो किसी
घरनी ने घरवाले के लिए ,
चिलम पर फूँक मार ,
आग की आँच तेज की है ....।

घरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,
जीवन की जंजाल बनी है ,
गीली जलावन, जी जला रही है...

लौटे परिंदों ने पता बता दी है ....
किसान ,किस्मत के खेतो में ,
खाद-पानी पटा घर लौट रहा है...

बैलों के गले में बंधी घंटी ,
हलों के साथ सुर में सुर मिला
संदेसा भेज ही रहे हैं... !!

मेघ अकसर उलझन में होता है
किस की बात सुने और माने
वो सिकुड़ा लाज से पानी-पानी !
कहीं जलावन गीली
कहीं कच्चे मिट्टी-बर्तन के गिले
साजन बिन सावन से गिला
तो मेघ को सब कोसे
बेचारा मेघ उसके हिस्से बस गिला
वो तो ऐसे ही है गीला गीला ।