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मेघ तो फिर-फिर ये छायेंगे / गुलाब खंडेलवाल


मेघ तो फिर-फिर ये छायेंगे
पर वैसे ही दिवस सुहाने क्या व्रज में आयेंगे!
 
सूनी गलियाँ, सूना पनघट
सूना ही होगा वंशीवट
जब भी जायेंगे यमुना-तट
                      रोते ही जायेंगे
 
गाँव-गाँव में भीड़ लगाये
लोग कहेंगे पूर्व कथायें
पर कितनी भी बात बनायें
                 श्याम न मिल पायेंगे
 
फिर भी भुला काल की बाधा
क्या हरि सँग न दिखेगी राधा
जब अपने गीतों का आधा
                   पद भी हम गायेंगे

मेघ तो फिर-फिर ये छायेंगे
पर वैसे ही दिवस सुहाने क्या व्रज में आयेंगे!