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मेघ बरसे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1
मेघ बरसे
धरा -गगन एक
प्राण तरसे ।
2
तुम्हारा आना
आलोक के झरने
साथ में लाना ।
3
बसंत आया
धरा का रोम-रोम
जैसे मुस्काया ।
4
बरस बीते
आँसुओं के गागर
कभी न रीते ।
5
मन्द मुस्कान
उजालों ने दे दिया
जीवन -दान ।
6
आए जो आप
जनम-जनम के
मिटे संताप ।
7
कहीं हो नारी
अन्याय के जुए में
सदा से हारी
8
आज का इंसान
न पा सका धरती
न आसमान ।
9
चुप बाँसुरी
स्वर संज्ञाहीन-से
गीत आसुरी ।
10
तुम्हारे हाथ
सौंप दिया हमने
साँसों का साथ ।

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