Last modified on 7 अक्टूबर 2015, at 05:37

मेढक की खाज / कृष्ण शलभ

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:37, 7 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण शलभ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेढक बोला- ‘टर्रम-टूँ
जरा इधर तो आना तू,
खाज़ लगी मेरे सिर में
जरा देखना कितनी जूँ!’

कहा मेढकी ने इतरा-
‘चश्मा जाने कहाँ धरा,
बिन चश्मे के क्या देखूँ
कहाँ कहाँ है कितनी जूँ!’