भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा ख़ून तुमने किया / सपन सारन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:49, 13 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सपन सारन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम, जो सुख बटोरे बैठे हो
अपने हिस्से से
किलो भर अधिक ।
तुम, जो पेट भरने के बाद
अपनी थाली में
भर लेते हो मेरा खाना ।

मेरा ख़ून तुमने किया —
उस पहिये ने नहीं जिसे रौंद दिया
तुमने,
जिसने उस पटरी पर मुझे होने दिया
बली ।

थी हिम्मत तो मर जाते मेरे साथ
लेकिन तुम ज़िन्दा हो …

इसीलिए
मेरा ख़ून तुमने किया
तुमने ।