Last modified on 25 सितम्बर 2020, at 18:01

मेरा गाँव पानी में बसता है / संदीप शिवाजीराव जगदाले / सुनीता डागा

कोई पूछे नहीं मुझसे मेरा पता
नहीं बता पाऊँगा मैं
किस ठौर था मेरा गाँव
कहाँ से आया हूँ
कितने रास्ते निकल चुके हैं
इन क़दमों के नीचे से

गाँव-खलिहानों तक हहराता आया था पानी
धड़ से ऊपर तक भरने लगा
घबराहट से भागने लगा मैं
जिस-तिस से पूछता रहा
आख़िर मुझे ही किसलिए भगाया गया ?

कहाँ है मेरा गाँव ?
इस जगह पर कैसे बसाऊँ मैं
अपना घरबार ?

हाड़तोड़ मेहनत कर खपता रहा
पत्थरों को बाँध तक लाया
नहर-पोखर खोदे
मेरे घर-द्वार पर से गुज़रा पानी
दूसरों की फ़सलों को पिलाता रहा
पर किसी ने पैर रखने तक की नहीं बख़्शी ज़मीन
कई-कई मोड़ों-पड़ावों से गुज़रकर
चलता रहा अनवरत
किसी मिट्टी ने नहीं लगाया सीने से
ग़ैर बनकर रह गया

इस पानी में
बसी हुई हैं
मछलियाँ
केकड़े
मगरमच्छ
कछुए
और
मेरा गाँव भी
डरा-सहमा रहता हूँ
कोई पूछ न बैठे मेरा पता…

मूल मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा