Last modified on 14 अगस्त 2009, at 08:27

मेरा जी है जब तक तेरी जुस्तजू है / ख़्वाजा मीर दर्द

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:27, 14 अगस्त 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मेरा जी है जब तक तेरी जुस्तजू है
ज़बाँ जब तलक है यही गुफ़्तगू है

ख़ुदा जाने क्या होगा अंजाम इसका
मै बेसब्र इतना हूँ वो तुन्द ख़ू है

तमन्ना है तेरी अगर है तमन्ना
तेरी आरज़ू है अगर आरज़ू है

किया सैर सब हमने गुलज़ार-ए-दुनिया
गुले-दोस्ती में अजब रंगो-बू है

ग़नीमत है ये दीद वा दीदे-याराँ
जहाँ मुँद गयी आँख, मैं है न तू है

नज़र मेरे दिल की पड़ी ‘दर्द’ किस पर
जिधर देखता हूँ वही रू-ब-रू है