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मेरा देश / महेन्द्र भटनागर

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प्रत्येक दिशा में

आशातीत

प्रगति के लम्बे डग भरता,

'वामन-पग' धरता

मेरा देश

निरन्तर बढ़ता है !

पूर्ण विश्व-मानव की

सुखी सुसंस्कृत अभिनव मानव की

मूर्ति

अहर्निश गढ़ता है !

मेरा देश

निरन्तर बढ़ता है !


प्रतिक्षण सजग

महत् आदर्शों के प्रति,

बुद्धि-सिद्ध

विश्वासों के प्रति।


मेरा देश

सकल राष्ट्रों के मध्य अनेकों

सहयोगों के,

पारस्परिक हितों के,

आधार सुदृढ़

निर्मित करता है !

तम डूबे

कितने-कितने क्षितिजों को

मैत्री की नूतन परिभाषा से

आलोकित करता है !

समता की

अनदेखी

अगणित राहों को

उद्घाटित करता है !


उसने तोड़ दिये हैं सारे

जाति-भेद औ वर्ण-भेद,

नस्ल भेद औ' धर्म-भेद।


सच्चे अर्थों में

मेरा देश

मनुज-गौरव को

सर्वोपरि स्थापित करता है !

मृतवत्

मानव-गरिमा को

जन-जन में

जीवित करता है !


मेरा देश

प्रथमतः

भिन्न-भिन्न

शासन-पद्धित वाले राष्ट्रों को

अपनाता है !

शांति-प्रेम का

अप्रतिम मंत्र

जगत में गुँजित कर

भीषण युद्धों की

ज्वाला से आहत

मानवता को

आस्थावान बनाता है !

संदेहों के

गहरे कुहरे को चीर

गगन में

निष्ठा-श्रद्धा के

सूर्य उगाता है !


उन्नति के

सोपानों पर चढ़ता

मेरा देश,

निरन्तर

बहुविध

बढ़ता मेरा देश !


प्रतिश्रुत है --

नष्ट विषमता करने,

निर्धनता हरने !

जन-मंगलकारी

गंगा घर-घर पहुँचाने !

होठों पर

मुसकानों के फूल खिलाने,

जीवन को

जीने योग्य बनाने !