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मेरा पता / सुभाष राय

मेरे पते में मेरा घर ही नहीं है
गोल चौराहा भी शामिल है
क्योंकि हर बार जब कोई दोस्त
आ रहा होता है मेरे घर
बताता हूँ उसे, गोल चौराहे से बाएँ मुड़ना
और सीधे आ जाना पाँचवें मकान पर

मेरे पते में मेरी महरी भी शामिल है
जो रोज़ पाँच बजे तड़के
घण्टी बजाकर जगा देती है मुझे
बर्तन माँजती है, झाड़ू लगाती है
और काम पूरा होने पर प्यार से
बोलती है, जा रही हूँ भैया

मेरे पते में मेरा धोबी भी है
जिसके बच्चे रोज़ दिन में कई बार
आते हैं इस्तरी के लिए कपड़े माँगने
और उदास हो जाते हैं जब कभी
कह देता हूँ, आज कपड़े नहीं हैं

मेरे पते में मेरे घर के आस-पास की
सारी झुग्गियाँ शामिल हैं
जिनमें रहते हैं ग़रीब, मज़दूर
मेहनतकश और बेघर लोग
जब भी ज़रूरत पड़ती है, काम आते हैं
बाहर जाता हूँ जब कभी
घर अगोरते हैं रात-रात

मेरे पते में हर वह व्यक्ति शामिल है
जो जानता, पहचानता है मुझे
जो किसी भी भटके हुए आदमी को
पहुँचा सकता है मेरे पास

मेरे पते में शामिल हैं वे
सारी सड़कें, पगडण्डियाँ, गलियाँ
जो किसी भी दिशा से चलकर
आती हैं मेरे दरवाज़े तक
उनमें किसी पर भी चलकर
आ सकता है मुझे ढूँढ़ता कोई दोस्त

मेरे पते में शामिल हैं
मेरे घर के रास्ते में पड़ने वाले
पेड़-पौधे, कुएँ, तालाब, बावड़ियां
जिनमें हवा और पानी बचा है
जिन्होंने कभी भी देखा है
मुझे उधर से जाते हुए
जिनके हृदय में दर्ज हैं मेरी छायाएँ

मेरे पते में शामिल है
मेरा मुहल्ला, मेरा शहर
मेरा देश और मेरी दुनिया
जो मेरे पुरखों ने बनाई है
और जो हम बनाने वाले हैं ।