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मेरा प्रेमी - 2 / मोहिनी सिंह

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तुम्हारा प्रेम है मेरे एक हिस्से तक
जो तुमने देखा
जो मैंने दिखाया
तुम गए उसी किस्से तक
जहाँ तक का रस्ता मैंने बताया
और बनाया।
तुम देख नहीं सकते इस गोले के दोनों पार
एक साथ
क्योंकि तुम अनंत नहीं हो
तुमने देखे खिलते फूल
या देखीं गहराती जड़ें
कभी मिट्टी हो तो बसंत नहीं हो
ऐ मेरे हर अंश से अनछुए दोस्त
तुमने जब मेरा दिन देखा तो दिखी मेरी रात नहीं
जब तुम सोये तारों के चादर तले
मेरी गोद में
तुमने महसूसी नहीं मेरी सूरज की गर्मी से जलती छाती
मैं विशाल हूँ।
और तुम देख सकते हो एक हिस्सा भर
मेरी एक खिड़की में है तुम्हारा घर
इसलिए मेरी एक टुकड़ा जमीं के मालिक
मैंने कई मनुष्य जने
और बन गई धरती
मेरा हर टुकड़ा तृप्त है
किसी की सृष्टि होके
तृप्त है मेरी गोद में सोते लाखों सर
एक टुकड़ा जमीं लेके
तृप्त हैं मेरी छाती को सींचती आँखें
आग को धान करके
और तृप्त हैं मेरी योनि से लोहा निकालते हाथ
कोयलों को राख करके
मेरा हर टुकड़ा तृप्त है
कि मुझपे बरसता है दुलार
अंश-अंश
मेरी सम्पूर्णता को चाहने वाला हो सकता है
बस अनंत।।