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"मेरा यह दर्द ख़त्म हो जाये कभी/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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मेरा यह दर्द ख़त्म हो जाये कभी
 
मेरा यह दर्द ख़त्म हो जाये कभी
जो दुआ में तू मुझे माँग पाये कभी
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तू दुआ में मुझे माँग पाये कभी
  
टूट चुके हैं मेरी तमन्ना के दोश
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तू ख़ुद संभाला देने को आये कभी
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तू ख़ुद मुझे संभालने आये कभी
  
कबसे गया है न आया आज तक
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कबसे गया है न आया आज तलक
मेरी आरज़ू तुझे खींच लाये कभी
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मेरी चाहत तुझे खींच लाये कभी
  
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कोई इस तस्कीं को मिटाये कभी
 
कोई इस तस्कीं को मिटाये कभी
  
ग़मगीन शाम है और उदास हम
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क्यों गुफ़्तगू का मौक़ा आये कभी
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हमसे उल्फ़त किये बनती नहीं
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मोहब्बत राहे-जुस्तजू पाये कभी
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ख़स्ता हाल है दिल बहुत तेरे लिए
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तस्वीर मुझसे बात करती नहीं
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तस्वीरें मुझसे बात करती नहीं
तेरा यह दीवाना सुकून पाये कभी
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तेरा दीवाना सुकून पाये कभी
  
तेरी कशिश भरी एक नज़र इधर
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तेरी कशिश भरी एक नज़र इधर भी हो
 
दिल पर अपना जादू चलाये कभी
 
दिल पर अपना जादू चलाये कभी
  
तुम न जानो मेरे प्यार के बारे में
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तुम न जानो मेरा प्यार ये अलग बात
और ख़ुशबू तेरा पयाम लाये कभी
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पर ख़ुशबू तेरा पयाम लाये कभी
  
 
पहली नज़र से जो हसरत है मुझे
 
पहली नज़र से जो हसरत है मुझे
काश ख़ूबरू उसे समझ पाये कभी
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काश सुम्बुल उसे समझ पाये कभी
  
'''शब्दार्थ:
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दोश : कंधा, shoulder | मजमूँ : विषय, subject | ख़ूबरू : सुन्दर चेहरे वाला, beautiful
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17:51, 16 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


लेखन वर्ष: २००४/२०११

मेरा यह दर्द ख़त्म हो जाये कभी
तू दुआ में मुझे माँग पाये कभी

टूट चुके हैं मेरी तमन्ना के दोश<ref>कंधे</ref>
तू ख़ुद मुझे संभालने आये कभी

कबसे गया है न आया आज तलक
मेरी चाहत तुझे खींच लाये कभी

यारब<ref>ऐ ख़ुदा</ref> मैं भटक रहा हूँ सहराँ<ref>रेगिस्तान</ref> में
कोई इस तस्कीं को मिटाये कभी

शामें ग़मगीन<ref>दुख में लिप्त</ref> हैं और उदास हम
क्यों गुफ़्तगू<ref>बातचीत</ref> का मौक़ा आये कभी

मुझसे अब उल्फ़त किये बनती नहीं
मोहब्बत रहे-जुस्तजू<ref>चाहत के रास्ते</ref> पाये कभी

ख़स्ता हाल<ref>बहुत कमज़ोर</ref> है दिल बहुत तेरे लिए
तुझको गर मजमूँ<ref>विषय</ref> समझ आये कभी

तस्वीरें मुझसे बात करती नहीं
तेरा दीवाना सुकून पाये कभी

तेरी कशिश भरी एक नज़र इधर भी हो
दिल पर अपना जादू चलाये कभी

तुम न जानो मेरा प्यार ये अलग बात
पर ख़ुशबू तेरा पयाम लाये कभी

पहली नज़र से जो हसरत है मुझे
काश सुम्बुल उसे समझ पाये कभी

शब्दार्थ
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