मेरा सर था, कटारी रूबरू थी
मेरी आईनादारी रूबरू थी
मैं सच को सच बताना चाहता था
मगर सोचा विचारी रूबरू थी
कसीदे लिख के दौलत मिल तो जाती
मुई ईमानदारी रूबरू थी
सफाया जंगलों का हो गया फिर
अकेली सिर्फ़ आरी रूबरू थी
खुदा को लोग सजदा कैसे करते
इधर शाही सवारी रूबरू थी
वतन था इक तरफ़, घर एक जानिब
मुसीबत कितनी भरी रूबरू थी