भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा साया / आशीष जोग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दिन भर मेरे आस-पास खेलता रहा मेरा साया,
शाम तक मुझसे भी बड़ा हो गया मेरा साया |

मैं समझता था कि मेरा दोस्त है मेरा साया,
फिर जाना कि है ग़ुलाम रौशनी का मेरा साया |

तरस आता है कितना मजबूर है मेरा साया,
पास रह कर भी कितना दूर है मेरा साया |

बचपन में शरीर था मेरे जैसा ही मेरा साया,
मेरे साथ झुक के अब चलता है मेरा साया |

दिन भर न छोड़े है मुझे एक पल मेरा साया,
जाने कहाँ रात को गुम हो जाए है मेरा साया