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मेरी आँखें उछल-कूद करती हैं / अत्तिला योझेफ़

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मेरी आँखें उछल-कूद करती हैं,
मैं फिर पगला गया
ऐसा होने पर मुझे सताओ मत,
मुझे कस कर पकड़ो

जब मैं आपे से बाहर हो जाऊँ
तो अपने मुक्के मत तानो, मेरी बिख़री नज़र
इसे कभी नहीं ताड़ पाएगी
मुझे झकझोरो मत, मज़ाक मत बनाओ

रात के नीरस छोर को दूर करो
सोचो, मैंने सौंपने लायक कुछ भी नहीं छोड़ा है,
थाम कर रखने वाला कुछ भी नहीं
अपना कहने लायक कुछ भी नहीं,

मैं उसकी पगड़ी खाता हूँ आज
और इस कविता के पूरी होने पर, जो पूरी होगी नहीं
टार्च की रोशनी लायक जगह,
जिधर से
मैं नंगी आँखों में घुसा हूँ,

यह कौन सा पाप है
जो वे देख रहे हैं
वे जो बोलेंगे नहीं, मैं जो भी करूँ इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
जो भी मुझे प्यार करेगा,
 मैं उस पर दावा करूँगा।

जिसका मतलब नहीं जानते, उस पाप पर भरोसा करें
मेरे क़ब्र से निकलने और मुक्त हो जाने तक।

रचनाकाल : 1936

अंग्रेज़ी से अनुवाद : उमा