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मेरी कविता, आज तुम प्यार में ढल जाना। / शीला तिवारी

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मेरी कविता, आज तुम प्यार में ढल जाना
नहीं, मझे नहीं लिखना दर्द, पीड़ा व विछोह
हर बार मैं अपनी पीड़ा में तुझे गढ़ती हूँ
अपने दिल में उठते तूफानों को
तुझमें समा, समझा लेती खुद को
आज तुम मेरे लिए प्यार में ढल जाना
जहाँ कण-कण शब्दों के रोमांचित प्रेम में डूबी हो
मेरी कविता, आज तुम प्यार में ढल जाना।
डूबना चाहती हूँ मैं, तुझसे उस नटखट बालपन में
माखनचोर कान्हा के चितचोर मन में
जो जीता है खुल कर
जहाँ जाता, प्यार लुटाता जी भर
चाहती हूँ जाना उस प्रेम में
जहाँ राधा कान्हा के प्रेम में खोई
उस बंसी के सुर में जहाँ प्रेम सर्वस्व है
उस चाह में जहाँ गोपियाँ अपना सब कुछ भूल जाती
कविता, तुम कान्हा के बंसी में,
प्यार के मीठे सुर हो जाना बह जाना।
मेरी कविता, आज तुम प्यार में ढल जाना।
दर्द में उतरते-उतरते थक गयी
इतंज़ार, तन्हाई से जूझते घूम रही हूँ तुम्हारे साथ
उदास चाँद का तिलक लिए
कविता, आज तू बन जा राधा के प्रेम की छवि
प्रेम के अर्थ को कण-कण में सिंचित कर जाना।
मेरी कविता, आज तुम प्यार में ढल जाना।
मुझे नहीं तरस खाना अपने पर
उबकाई आती अब अपने अफ़सानों से
भूल जाना चाहती हूँ
नहीं उतारना कविता के सतह पर
तू बन मीरा के प्यार की पंक्ति
जहाँ शब्दों की आत्मा में प्रेम की पराकाष्ठा हो
पी डाला विष प्याला
दे डाली परिभाषा अलग शुद्ध प्रेम की
कविता तुम, कृष्ण रंग के जादू में रंग जाना
प्यार के उस अनंत गहराई में उतर, शब्दों में ढल
प्रेम के रस में डूबी तरुण कामिनी सी
मेरे दिल के पन्नों में उतर जाना
मेरी कविता, आज तुम प्यार में ढल जाना।