Last modified on 26 जनवरी 2018, at 18:24

मेरी गौरैया / त्रिभवन कौल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:24, 26 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिभवन कौल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरी गौरैया बच कर रहियो
यहाँ दरिन्दे आम हैं
ना उनके बेटी ना उनकी बहना
उनका संगी’ काम है
 
पहन मखोटे तरह तरह के
सब को यह भरमाये हैं
मानवी रिश्तों का मोल नहीं
राक्षसों के यहाँ से आयें हैं

मानसिकता है गिरी हुई
चेतना शुन्य लोग यहाँ
बचके रहना ओ री गौरैया
नोचने को तत्पर यहाँ

इन गिद्दों से बच कर रहना
आकाश में मंडराते हैं
देखी जहाँ अकेली गौरैया
झपटा मार ले जाते हैं

छतरी के नीचे कब तक रखूँ मैं
आखिर बाहर निकलना है
लड़ना मरना सीख ले गौरैया
अब तो यही तेरा गहना है

एक गौरैया निर्भय भी थी
जागृत कर, विलीन हो गई
मशाल बन तुम, जलते रहना
जो अपना अस्तित्व बचाना है