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मेरी ज़बान उनके दहन में हो ऐ करीम / साक़िब लखनवी


मेरी ज़बान उनके दहन में हो ऐ करीम!
होना है फ़ैसला जो उन्हीं के बयान पर॥

‘साक़िब’! जहाँ में इश्क़ की राहें हैं बेशुमार।
हैरान अक़्ल है कि चलूँ किस निशान पर॥