भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी जानिब निगाहें उसकी हैं दुज़दीदह दुज़दीदह / अहमद अली 'बर्क़ी' आज़मी

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:57, 26 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद अली 'बर्क़ी' आज़मी |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी जानिब निगाहें उसकी की हैं दुज़दीदह दुज़दीदह
जुनूने शौक़ में दिल है मेरा शोरीदह शोरीदह
 
न पूछ ऐ हमनशीं कैसे गुज़रती है शबे फ़ुर्क़त
मैं हूँ आज़ुर्दह ख़ातिर वह भी है रंजीदह रंजीदह
 
गुमाँ होता है हर आहट पे मुझको उसके आने का
तसव्वुर में मेरे रहता है वह ख़्वाबीदह ख़्वाबीदह
 
वह पहले तो न था ऐसा उसे क्या हो गया आख़िर
नज़र आता है वह अकसर मुझे संजीदह संजीदह
 
न पूछो मेरी इस वारफ़्तगी ए शौक़ का आलम
ख़लिश दिल की मुझे कर देती है नमदीदह नमदीदह
 
बहुत पुरकैफ़ था उसका तसव्वुर शामे तनहाई
निगाहे शौक़ है अब मुज़तरिब नादीदह नादीदह
 
सफर दश्ते तमन्ना का बहुत दुशवार है बर्क़ी
पहुँच जाऊँगा मैं लेकिन वहाँ लग़ज़ीदह लग़ज़ीदह