भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी बरबादियों में जश्न का आया मज़ा उसको / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 16 नवम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी बरबादियों में जश्न का आया मज़ा उसको
चलो ऐसे सही हँसने का मौका तो मिला उसको

भले सैयाद है लेकिन वो इतना निर्दयी क्यों है
खुदा इस बात को लेकर कभी देगा सज़ा उसको

किसी जल्लाद ने पेशे से हटकर के कहा लेकिन
हमें तख़्ते पे लटकाना बहुत अच्छा लगा उसको

बड़ा कमजर्फ़ है खुद को ख़ुदा भी मान बैठा है
उसी का हुक्म चलता है गुमाँ ऐसा हुआ उसको

किसानों और मजदूरों को यूँ तो मारता भूखा
मगर टीवी पे कल कुछ और ही कहते सुना उसको

ढलेगा हुस्न, यौवन जब पता उसको चलेगा कल
अभी अपनी जवानी पर है कुछ ज़्यादा नशा उसको

ख़ता उसकी कहाँ है सब ख़ता केवल हमारी है
पता था जब वो अंधा है तो दरपन क्यों दिया उसको